Explained: why do companies launch IPOs!

Podcast Duration: 10:02
कंपनियां पैसे जुटाने के लिए पब्लिक के पास क्यों जाती हैं, क्यों IPO का रास्ता चुनती हैं?

जब भी कोई कंपनी IPO लाने का फैसला करती है तो आमतौर पर वो कारोबार बढ़ाने के लिए कैपेक्स जुटाना चाहती है। इस रास्ते में कंपनी को तीन फायदे होते हैं :

1. कंपनी को कैपेक्स के लिए पैसे मिल जाते हैं।
2. कंपनी कर्ज लेने से बच जाती है, कर्ज पर ब्याज बचने से कंपनी के पास मुनाफे के तौर पर ज्यादा पैसे बचते हैं।
3. जब आप कंपनी का शेयर खरीदते हैं तो कंपनी के प्रमोटर की तरह रिस्क में आप भी हिस्सेदार बन जाते हैं। हालांकि रिस्क इस पर निर्भर करता है कि आपके पास कितने शेयर हैं। लेकिन प्रमोटर अपना रिस्क बहुत सारे लोगों में बाँटने में जरूर कामयाब हो जाता है।

इसके अलावा IPO के जरिए पूंजी जुटाने के कुछ और भी फायदे हैं:
1. कंपनी के शुरुआती निवेशकों को अपना निवेश निकालने का मौका मिल जाता है: जब IPO के बाद कंपनी लिस्ट हो जाती है तो उसके शेयर कोई भी खरीद और बेच सकता है। इससे कंपनी के प्रमोटर, ऐंजल इन्वेस्टर, वेंचर कैपिटलिस्ट, PE फंड, जैसे तमाम लोगों को अपने शेयर बेचने का रास्ता मिल जाता है। इस तरह से वो अपना शुरूआती निवेश निकाल पाते हैं।
2. कंपनी के कर्मचारियों को पुरस्कार: कंपनी में पहले से काम कर रहे कर्मचारियों को कुछ शेयर एलॉट किए जा सकते हैं। इस तरह से जब कंपनी अपने कर्मचारियों को शेयर देती है तो इस समझौते को एम्पलाइज स्टॉक आप्शन (Employee Stock Option) कहते हैं। कर्मचारियों को ये शेयर डिस्काउंट पर दिए जाते हैं। जब कंपनी के शेयर IPO के बाद लिस्ट होते हैं तो कर्मचारियों को शेयर के भाव बढ़ने से फायदा होता है। गूगल, इन्फोसिस, ट्विटर और फेसबुक जैसी कंपनियों के कर्मचारी इस तरह के स्टॉक आप्शन का फायदा पा चुके हैं।
3. कंपनी का नाम बढ़ता है: पब्लिक लिस्टिंग के बाद कंपनी का नाम बड़ा हो जाता है क्योंकि उसके शेयरों में पब्लिक की हिस्सेदारी होती है और लोग उसे खरीद-बेच सकते हैं, और लोग उस कंपनी के बारे में ज्यादा जानने लगते हैं।
IPO से जुड़े कामों का घटनाक्रम ( IPO sequence of events):

IPO में हर कदम सेबी के नियमों के मुताबिक ही उठाना होता है। और ये कदम इस क्रम में उठाए जाते हैं:
1. मर्चेंट बैंकर की नियुक्ति. बड़े पब्लिक इश्यू में एक से ज्यादा मर्चेंट बैंकर हो सकते हैं।
2. सेबी को एक रजिस्ट्रेशन स्टेटमेंट के साथ एप्लीकेशन देना. रजिस्ट्रेशन स्टेटमेंट में ये बताया जाता है कि कंपनी क्या करती है, उसे IPO लाने की जरूरत क्यों है और कंपनी की वित्तीय स्थिति क्या है।
3. सेबी से IPO की मंजूरी लेना. रजिस्ट्रेशन स्टेटमेंट मिलने के बाद सेबी फैसला करती है कि मंजूरी देनी है या नहीं।
4. DRHP- इश्यू को शुरूआती मंजूरी मिलने के बाद कंपनी को अपना DRHP यानी ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस तैयार करना होता है। इसे पब्लिक के साथ भी शेयर किया जाता है। DRHP में जो जानकारी होनी जरूरी हैं वो हैं :
5. IPO का साइज यानी कितना बड़ा IPO होगा
6. कुल कितने शेयर जारी किए जा रहे हैं
7. कंपनी इश्यू क्यों ला रही है और उससे जुटाए गए पैसों का क्या इस्तेमाल किया जाएगा।
8. कंपनी के बिजनेस का पूरा ब्यौरा, बिजनेस मॉडल, खर्चे आदि
9. सभी फाइनेंशियल कागजात
10. मैनेजमेंट का नजरिया कि आने वाले समय में कंपनी का करोबार कैसा रहने वाला है।
11. बिजनेस से जुड़े सभी रिस्क
12. मैनेजमेंट से जुड़े लोगों की पूरी जानकारी।

- IPO की मार्केटिंग (Market the IPO)- कंपनी के IPO से जुड़े विज्ञापन जारी करना जिससे लोगों को आई पी ओ के बारे में पता चल सके। इसी काम को रोड शो भी कहते हैं।
- प्राइस बैंड तय करना- कंपनी बाजार की उम्मीद से बहुत अलग प्राइस बैंड नहीं बना सकती नहीं तो लोग इसको सब्सक्राइब नहीं करेंगे।
- बुक बिल्डिंग (Book Building)- रोड शो पूरा हो जाने के बाद और प्राइस बैंड तय होने के बाद कंपनी को आधिकारिक तौर पर कुछ दिनों के लिए शेयर का सब्सक्रिप्शन खोलना होता है जिससे लोग इश्यू में पैसे लगा सकें। मान लीजिए प्राइस बैंड 100 से 120 का है तो बुक बिल्डिंग से पता चल जाएगा कि लोग किस कीमत पर पैसे लगा रहे हैं और कौन सी कीमत उन्हें सही लग रही है। इस सारी जानकरी को जमा करना ही बुक बिल्डिंग कहा जाता है। इससे सही कीमत का अंदाजा लगाया जाता है।
- क्लोजर (closure)– बुक बिल्डिंग पूरा हो जाने के बाद शेयर की लिस्टिंग कीमत तय की जाती है। ये कीमत आमतौर पर वो कीमत होती है जिस पर सबसे ज्यादा एप्लीकेशन या अर्जी आई हों।
- लिस्टिंग डे (Listing Day)- इस दिन कंपनी का शेयर एक्सचेंज पर लिस्ट होता है। लिस्टिंग कीमत उस दिन शेयर की माँग और सप्लाई के आधार पर तय होती है। इसके बाद शेयर अपने कट ऑफ कीमत से प्रीमियम, पार या डिस्काउंट पर लिस्ट होता है।

IPO के बाद क्या होता है? (What happens after the IPO?)
जब तक IPO या इश्यू खुला रहता है तब तक निवेशक IPO के प्राइस बैंड के भीतर अपनी पसंद की कीमत पर शेयर के लिए बोली लगा सकते हैं या बिड कर सकते हैं, तब तक इसे प्राइमरी मार्केट कहते हैं। लेकिन जैसे ही शेयर एक्सचेंज पर लिस्ट हो जाता है कोई भी उस शेयर को खरीद बेच सकता है, इसे सेकेंडरी मार्केट कहते हैं। इसके बाद शेयर की खरीद बिक्री रोजाना होने लगती है।