शेयर मार्केट में वायदा और विकल्प क्या है

अगर दुनियाभर के शेयर बाज़ार में कोई समानता है, तो वो है कीमतों में उतार-चढ़ाव। चाहे वो स्टॉक हो या कृषि सम्बंधित उत्पाद, मुद्रा हो या पेट्रोल, कीमतों में उछाल या गिरावट होना आम बात हैं। कीमतों में अस्थिरता के कई कारण हो सकते हैं जिन में आपूर्ति और मांग, अर्थव्यवस्था की स्थिति, जंग, राजनितिक घटनाक्रम, टैरिफ़ की लड़ाई और मौसम शामिल हैं। कीमतों में अस्थिरता, निवेशकों के लिए एक बड़ी परेशानी का कारण बन सकती हैं। हालाँकि वायदा और विकल्प एक ऐसा ज़रिया है जिस से बाज़ार में होते उतार-चढ़ाव के ज़ोखिम को कम किया जा सकता है।

फ्यूचर/ वायदा क्या है?

वायदा एक तरह का यौगिक है जिसका मूल्य आधारभूत परिसंपत्ति या अंडरलाइंग एसेट पर निर्भर करता है। इस आधारभूत परिसंपत्ति के अंतर्गत कृषि उत्पाद, खनिज़, वित्तीय संसाधन जैसे शेयर आदि आते हैं। वायदा, दो पार्टियों के बीच एक अनुबंध है जो एक खरीददार (या विक्रेता) को एक निश्चित मूल्य और एक तय तारीख़ पर कोई परिसंपत्ति (एसेट) का एक हिस्से को ख़रीद-फरोख्त करने की आज़ादी देता है। उदाहरण के तौर पे, wमान लीजिये आप ने रु 50 प्रति शेयर के भाव से, कंपनी X के 100 शेयर खरीदने का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट एक निश्चित तारीख पर किया। अब आपको पता चला कि फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म होने से पहले कंपनी X के शेयर का भाव रु 60 तक चढ़ गया है। पर अब भी आपके लिए शेयर का भाव रु 50 प्रति शेयर ही रहेगा और फलस्वरूप आप रु 1000 का मुनाफ़ा कमा पाएंगे। हालांकि, अगर शेयर का भाव रु 40 तक गिर जाता है तो आपको रु 1000 का नुकसान झेलना पड़ेगा। अतः फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट से एक ख़रीददार का मुनाफ़ा तभी है जब उससे शेयर का भाव ऊपर जाने की संभावना नज़र आती हो। शेयर की कीमत नीचे जाने पर विक्रेता फ़ायदे में रहेगा।

विकल्प क्या है?

बाज़ार में अस्थिरता की आशंका को कम करने के लिए विकल्प एक अन्य जरिया है। फ्यूचर एंड ऑप्शन का कॉन्ट्रैक्ट सामान होता है पर इस संदर्भ में खरीददार या विक्रेता के पास यह अधिकार होता है जिस से वो कॉन्ट्रैक्ट का इस्तेमाल करने के लिए बाध्य नहीं होता।

विकल्प के दो प्रकार हैं – कॉल विकल्प और पुट विकल्प, कॉल विकल्प में खरीददार के पास एक निश्चित मूल्य और भविष्य में तय तारीख़ पर कोई परिसंपत्ति (एसेट) के हिस्से का ख़रीद-फरोख्त करने का विकल्प होता है और उसे इस कॉन्ट्रैक्ट का पालन नहीं करने की छूट भी होती है। पुट विकल्प में विक्रेता के पास यह अधिकार होता है कि वो एक निश्चित मूल्य और भविष्य में तय तारीख़ पर कोई परिसंपत्ति (एसेट) के हिस्से का ख़रीद-फरोख्त करेगा या नहीं। उसके पास भी इस कॉन्ट्रैक्ट का पालन नहीं करने की छूट होती है।

उदाहरण के तौर पे, मान लीजिये आप ने रु 50 प्रति शेयर के भाव से, कंपनी X के 100 शेयर खरीदने का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट एक निश्चित तारीख पर किया। अब आपको पता चला कि फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म होने के दिन कंपनी X के शेयर का भाव रु 40 तक गिर गया है, अतः अब आपको रु 50 के भाव में खरीददारी करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। ऐसे हालात में आपके पास रु 50 के भाव से खरीददारी नहीं करने का विकल्प मौजूद होता है जिससे आपको रु 40 की बचत होगी और आपने विकल्प कॉन्ट्रैक्ट अपनाने के लिए प्रीमियम भरा था, उतनी हीं रक़म का नुकसान उठाना होगा। यह स्पष्ट है कि फ्यूचर एंड ऑप्शन में अगर तुलना की जाये तो ऑप्शन, कम जोख़िम भरा होता है।

शेयर बाज़ार में वायदा और विकल्प को वर्ष 2000 में पेश किया गया था और आज आप इसे चुनिंदा बाज़ार और सूचकांक में इस्तेमाल कर सकते है जिनमें Nifty 50 शामिल है। फ्यूचर एंड ऑप्शन के साथ व्यापार करना फायदेमंद है क्योंकि आपको आधारभूत परिसंपत्ति या अंडरलाइंग एसेट खरीदने के लिए रक़म ख़र्च करने की जरुरत नहीं पड़ती। आपको सिर्फ प्रीमियम का भुगतान करके वायदा या विकल्प का कॉन्ट्रैक्ट लेना होता है। ख़ासतौर पर विकल्प, व्यापार का एक सुरक्षित जरिया है।